जब भारत में सनातन धर्म की जड़ें शिथिल हो रही थीं और अनेक संप्रदायों के कारण धर्म का मूल स्वरूप लुप्त हो रहा था, तब दक्षिण भारत के केरल में आदि शंकराचार्य का अवतरण हुआ। मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने जो कार्य किए, वे सामान्य मनुष्य के लिए असंभव हैं। उन्होंने न केवल अद्वैत वेदांत का प्रचार किया, बल्कि पूरे भारत को सांस्कृतिक और धार्मिक सूत्र में पिरो दिया।
📜 संक्षेप परिचय
- जन्म: कालड़ी, केरल (वैशाख शुक्ल पंचमी)
- गुरु: गोविंद भगवत्पाद
- दर्शन: अद्वैत वेदांत ("अहं ब्रह्मास्मि")
- महासमाधि: केदारनाथ (32 वर्ष की आयु में)
⚔️ मंडन मिश्र के साथ ऐतिहासिक शास्त्रार्थ
शंकराचार्य के जीवन का सबसे प्रसिद्ध प्रसंग मंडन मिश्र के साथ हुआ शास्त्रार्थ है। मंडन मिश्र उस समय के महान कर्मकांडी विद्वान थे। बिहार के महिष्मती में दोनों के बीच कई दिनों तक शास्त्रार्थ हुआ, जिसकी निर्णायक मंडन मिश्र की धर्मपत्नी उभय भारती थीं।
जब मंडन मिश्र हारने लगे, तब देवी उभय भारती ने स्वयं शास्त्रार्थ किया। अंततः शंकराचार्य की विजय हुई और मंडन मिश्र उनके शिष्य बन गए, जिन्हें बाद में सुरेश्वराचार्य के नाम से जाना गया। यह जीत केवल तर्क की नहीं, बल्कि ज्ञान के सर्वोच्च शिखर की जीत थी।
🕉️ चार दिशाओं में चार पीठों की स्थापना
धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों (पीठों) की स्थापना की:
| दिशा | मठ का नाम | स्थान |
|---|---|---|
| पूर्व | गोवर्धन पीठ | पुरी (ओडिशा) |
| पश्चिम | शारदा पीठ | द्वारका (गुजरात) |
| उत्तर | ज्योतिर्मठ पीठ | बद्रीनाथ (उत्तराखंड) |
| दक्षिण | शृंगेरी शारदा पीठ | चिकमगलूर (कर्नाटक) |
✍️ महान साहित्यिक योगदान
शंकराचार्य ने प्रस्थानत्रयी (उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता) पर भाष्य लिखे। उनके द्वारा रचित 'भज गोविंदम', 'सौंदर्य लहरी' और 'निर्वाण षट्कम' आज भी करोड़ों हिंदुओं के कंठ में निवास करते हैं। उन्होंने बताया कि "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः" (ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है और जीव ही ब्रह्म है)।
विचारणीय तथ्य
क्या आप जानते हैं? आदि शंकराचार्य ने ही दशनामी संप्रदाय और कुंभ मेले के आयोजन को व्यवस्थित रूप दिया था ताकि साधु-संत एकजुट होकर धर्म की रक्षा कर सकें।
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ॐ नमः शिवाय